भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तेरे प्यार मै पागल होगी, रोटी तक ना खाई / ललित कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)  
 
|रचनाकार=ललित कुमार (हरियाणवी कवि)  
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=
+
|संग्रह=सन्दीप कौशिक
 
}}
 
}}
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}
 
{{KKCatHaryanaviRachna}}

12:14, 8 फ़रवरी 2019 के समय का अवतरण

तेरे प्यार मै पागल होगी, रोटी तक ना खाई,
सारी रात रही लौटती, नींद तलक ना आई || टेक ||

अग्नि देव सा रूप तेरा, क्यूँ चेहरे पै छाई उदासी,
राणी बणन की नहीं जरूरत, मै रह्ल्यु बणकै दासी,
मैं तेरे प्रेम की घणी प्यासी, क्यूँ इतनी वार लगायी ||

न्हा-धौकै सिंगार करू, पहरु कंठी माला मै,
या कोडिया के भा की दासी, तोल दई लाला मै,
आज रात नृतशाला मै, तू कर लिए मन की चाही ||

पांच पतियों से मनै डर लागै, मेरी करै काटकै ढेरी,
उन पांचो नै दे मार एकबै, फेर बहूँ बणू मै तेरी,
आकाश मै वै काटै घेरी, मेरै सिर चढ़ज्या करड़ाई ||

जब तक जीवै मेरे पति, न्यू रहणा हो डर-डर कै,
जै उननै जाण पाटज्या, मेरा पांडै छूटै मर कै,
ललित कुमार नै भक्ति करकै, करी प्रसन्न दुर्गे माई