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तोहर अँचरा / शेष आनन्द मधुकर

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तोहर अँचरा,
जहाँ-जहाँ हम्मर
देह से लिपट जाऽ हे,
उहाँ-उहाँ केत्ता गुलाब खिल के
कवच बन जाऽ हे।
फिन केकरो नजर के तीर होय,
इया दुनिया के जुलुम,
सब टूट जाऽ हे,
मुरझा जाऽ हे।
तूँ एक बार हमरा,
अप्पन परस से
पूरा के पूरा देह,
कवच बना दऽ।
फिन जहिना,
हम्मर जरुरत हो तो,
छू के तार दीहऽ,
अहिल्या नियन
पत्थर के जिनगी के,
चेतना से भर के
उबार दीहऽ।