भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"थके-हारे जल बेचारे / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार रवींद्र |संग्रह=आहत हैं वन / कुमार रवींद्…)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:51, 11 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

साँझ बैठी है अकेली
       गाँव के बीहड़ किनारे
 
छाँव के एकांत में चुपचाप
किरणें ढल रही हैं
दूर तक आकाश में
धुँधली हवाएँ पल रही हैं
 
रास्ते वीरान लगते बेसहारे
 
चुप खड़ीं शाखाएँ
अँधियारे संजोतीं
फुनगियों पर
थिर अपाहिज रात बोतीं
 
बरगदों पर टिक गए पहले सितारे
 
दूर तक उठते धुओं में
नींद फैली
दिन ढला
या हो गई हर आँख मैली
 
पनघटों पर थके-हारे जल बेचारे