भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थोड़ा-सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए / ओम प्रकाश नदीम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 1 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम प्रकाश नदीम |अनुवादक= |संग्रह= }} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थोड़ा-सा वक़्त के जो तक़ाज़े बदल गए ।
उनके तमाम नेक इरादे बदल गए ।

हम अपनी कैफ़ियत से सुबकदोश क्या हुए,
गुस्ताख़ आरज़ूओं के लहजे बदल गए ।

बनना था जिनको हाल के हालात का बदल’
मैं उनसे पूछता हूँ वो कैसे बदल गए ।

अब भी मक़ाम-ओ-मर्तबा अपनी जगह पे हैं,
लेकिन वहाँ पहुँचने के रस्ते बदल गए ।

जारी है अब भी मुर्दा रिवायात का सफ़र,
मय्यत थी जिन पे सिर्फ़ वो काँधे बदल गए ।

ज़ाहिर करें जो बात वो ज़ाहिर न हो ’नदीम’,
इज़हार के वो तौर-तरीक़े बदल गए ।