भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द बढ कर फुगाँ ना हो जाये / जिगर मुरादाबादी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:58, 16 अगस्त 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जिगर मुरादाबादी }} दर्द बढ कर फुगाँ ना हो जाये ये ज़मी...)
दर्द बढ कर फुगाँ ना हो जाये
ये ज़मीं आसमाँ ना हो जाये
(फुगाँ : lamentation; ज़मीं : earth; आसमाँ : sky)
दिल में डूबा हुआ जो नश्तर है
मेरे दिल की ज़ुबाँ ना हो जाये
(नश्तर : dagger; ज़ुबाँ : voice)
दिल को ले लीजिए जो लेना हो
फिर ये सौदा गराँ ना हो जाये
(सौदा : bargain; गराँ : costly)
आह कीजिए मगर लतीफ़-तरीन
लब तक आकर धुआँ ना हो जाये
(आह : sigh; लतीफ़-तरीन : pleasant; धुआँ : smoke)