भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दशहरा / शर्मिष्ठा पाण्डेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:14, 2 अगस्त 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परिवर्तनों के युग में...
कुछ नया होगा...
अब,दशहरे में...
नहीं जलेगा...
वह,दुराचारी,अनाचारी...
नराधम,दस मुखों वाला...
रावण.....
उसका वंश नहीं मिटा...
अमिट है...
बाँट दिए हैं उसने...
अपने गुण...
संस्कार...
एक मुख वालों में...
सत्तासीन हैं...
सँभालते हैं...
अपने पूर्वज की धरोहर...
और स्वतः ही...
संचित रखते हैं...
अपनी नाभि में अमृत...
रुपी विष...
जो,उन्हें जीवित रखता...
सदैव...
और अब...
बढती ही जाती...
उनकी वंश बेल...
दुगनी,तिगुनी...
रक्तबीज के समान...
और,
प्रवंचनाओं,धारणाओं...
के पत्थरों...
से,टूट गया है...
वह खप्पर...
जो,पान करता था...
उसके रक्त का...
और,पनपने न देता...
अन्य रक्तबीज...
अब आना होगा...
असंख्य रामों को...
क्यूंकि...
अब प्रत्येक...
एक मुखी का वध...
करना होगा...
दस दस रामों को...
और...
कल्पों तक...
चलता रहेगा त्रेता...
अन्य युग...
ऊँघ रहे...
करेंगे और प्रतीक्षा...
अपनी बारी की श.पा. ...
क्यूंकि...रावण ....
अभी मरा नहीं....