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"दाग / अर्चना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | चाँद पर उभरते दाग पर | |
सुने होंगे बहुत से वैज्ञानिक विश्लेषण और शोध भी | सुने होंगे बहुत से वैज्ञानिक विश्लेषण और शोध भी | ||
− | बहुत सी | + | बहुत सी उपमाएँ साहित्यकारों की |
लेकिन कहा एक लड़की ने | लेकिन कहा एक लड़की ने | ||
− | वो गढ्ढे बने हैं मेरे | + | वो गढ्ढे बने हैं मेरे आँसुओं से |
वहां जमा हुआ है काला नमकीन पानी | वहां जमा हुआ है काला नमकीन पानी | ||
ये जो अमावस है धरती के हिस्से की | ये जो अमावस है धरती के हिस्से की | ||
घना जंगल है ख़ामोशी का | घना जंगल है ख़ामोशी का | ||
उन चुप्पा लड़कियों की | उन चुप्पा लड़कियों की | ||
− | जो रात भर बतियाती हैं | + | जो रात भर बतियाती हैं चाँद से |
− | ये जो | + | ये जो चाँदनी बरसती है धरा के आंगन |
जल जाते हैं उगे हुए जंगल | जल जाते हैं उगे हुए जंगल | ||
जब गूंजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में | जब गूंजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में | ||
एक ठहरी हुई नदी का | एक ठहरी हुई नदी का | ||
− | निकल आता है अकबका कर बाहर | + | निकल आता है अकबका कर बाहर चाँद |
डूब जाती है धरती फट जाता है रंग | डूब जाती है धरती फट जाता है रंग | ||
− | शोकमग्न | + | शोकमग्न चाँद का |
− | नीली | + | नीली चाँदनी का उजला होना |
नहीं समझेंगे लोग | नहीं समझेंगे लोग | ||
नहीं समझेंगे डूब जाने का मतलब | नहीं समझेंगे डूब जाने का मतलब | ||
कि जल जाने का मतलब | कि जल जाने का मतलब | ||
− | सिर्फ जिस्म के | + | सिर्फ जिस्म के दाग़ नहीं होते। |
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09:58, 12 दिसम्बर 2017 का अवतरण
चाँद पर उभरते दाग पर
सुने होंगे बहुत से वैज्ञानिक विश्लेषण और शोध भी
बहुत सी उपमाएँ साहित्यकारों की
लेकिन कहा एक लड़की ने
वो गढ्ढे बने हैं मेरे आँसुओं से
वहां जमा हुआ है काला नमकीन पानी
ये जो अमावस है धरती के हिस्से की
घना जंगल है ख़ामोशी का
उन चुप्पा लड़कियों की
जो रात भर बतियाती हैं चाँद से
ये जो चाँदनी बरसती है धरा के आंगन
जल जाते हैं उगे हुए जंगल
जब गूंजता है समवेत क्रंदन चाँद के कानों में
एक ठहरी हुई नदी का
निकल आता है अकबका कर बाहर चाँद
डूब जाती है धरती फट जाता है रंग
शोकमग्न चाँद का
नीली चाँदनी का उजला होना
नहीं समझेंगे लोग
नहीं समझेंगे डूब जाने का मतलब
कि जल जाने का मतलब
सिर्फ जिस्म के दाग़ नहीं होते।