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दानलीला / भाग - 1 / सुंदरलाल शर्मा

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छत्तीस-गढ़ी-दानलीला
॥जै राजिव लोचन-बबा!॥
(सब ले आगू देंवता संउरे के मड़वना)

दोहा
जगदिश्वर के पांव में, आपन मूड़ नवाय॥
सिरी कृष्ण भगवान के, कहि हौं चरित सुनाय॥१॥

पंचगोठ
मन में मन तो मिल गइस, आंखी रहिस समाय॥
मया फन्द में राधिका, मछरी अस तड़फाय॥२॥

राधागोंठ
जा दिन ले नन्दलाल ला, ठाढ़े देखेंव खोर॥
कांहीं नहीं सुहावै, गोई! किरिया तोर॥३॥

सवैया
सुन आज मुहाटी में- ठाढ़े रहेंव, बेटवा जसुदा तहं आइस ओ॥
हंस के मोला देख भऊं टेंड़गा, कर के मुंह ला बिचकाइस ओ॥
तव दौंर पोटार निकार के लाज, धरेंव मूड़ा छोंड़ पराइस ओ॥
खरिखा के-तनी-वो धनी लरिका, ठेंगवा मोला आज बताइस ओ॥

दोहा
खरिखा-में लरिका लिये, देखेंव नन्द किशोर॥
चरखा सरिखा तभिच-ले, गिंजरत है मन-मोर॥५॥
कोनों जतन लगाय के, देते श्याम मिलाय॥
धोकर धोकर के रात दिन, परतेंव तोरेच पांय॥६॥

त्रोटक छन्द
जब ले सपना मैं निहारंव-ओ। तव ले मिलकी नइ मारेंव ओ॥
दिन रात मोला हयरान करै। दुखहाई ये दाई! जवानी जरै॥
मैं गोई! अब कोन उपाय करौं। के कहूं दहरा बिच बूड़ मरौं।
मोला कोनों उपाय-नइ सूझत है। ये गोई गोदना अस गूदत है॥
जब ले वोला मूडमें मौर धरे। गर में बने फूल के माला करे॥
लवड़ी दुहनी कर में लटुका। पहिरे पिंयरा-पिंयरा पटुका॥
मैं तो जात चले देख पारेंव ओ। वोला कुंज के कोती निहारेंव ओ॥
तब ले गोई! मैं बनि गेयेंव बही। थोरको सुरता मोला चेत नहीं॥
चिटको नइ अन्न सुहावै मोला। बिरदान्त मैं कोन बतावौं तोला॥
बढ़ के तोला गोई! बतावौं नहीं। थोरको तोर मेर लुकावौं नहीं॥
हस जानत मोर सुभाब गोई!। कतको दुखहाई बतावैं कोई॥
मिलिके कभू गौकुल जातेन-ओ। मन के मरजी-ला-बतातेन-ओ॥
दुख औ सुख-ला गोंठियातेन-ओ। घर सांझक-ले-फिर आतेन ओ॥
धर लेतेन थोरिक दूध-दही। गोठियाथौं गोई! मन-आथै नहीं॥
बेंच देतेन वीर बेंचातिस तो। कन्हया ला खवातेन खातिस-तो॥
लेवना बने लाल ला-देतेन वो। लाहो-ला-जिनगी के ले लेतेन वो॥
करेजा में खड़ोर-के नातेन-वो। मुह देखत में सुख पातेन-वो॥
नन्‍द गौंटिया-के बेटवा-हर-ओ। मोर आइस आंखिन-के-तर-ओ॥
तब ले चिटको नइ भूलत है। मोर आंखिच आंखी-में झूलत है॥
जब कान उटेर लगाथौं ओ। घुंघरू के कभू गम पाथंव-ओ!॥
जब झक्क ले आगू निहारथौं ओ। दहि चोर ला-मैं देख पारथौं ओ॥
मन ही मन में लगथै डर-ओ। हरि देइस मोला, कुछू कर-ओ॥
मन मोर चोराय सु लेइस है। मोहनी कुछू थोप-धौं देइस है॥
कोन जानथै जो कुछू जाहै होई। ये जवानी ला कइसे निभाहौं गोई॥

दोहा
देखे बिन नन्दलाल के, अब तो नइ रहि जाय॥
जात सगा डर छांड़ के; धरिहौं मोहन पांय॥१॥

चलो आज चलबो गोई! बृन्दाबन के बाट॥
दही बेंचबो जाय के; मथुरा जी के घाट॥

पंचगोंठ
ललिता औ चन्द्रावली; सुन प्यारी के बात॥
चलो चलो चलिबो गोई! कहि के पकरिन हांत॥

चौपाई
जतका-दूध-दही-अउ-लेवना। जोर-जोर-के दुधहा जेवना॥
मोलहा-खोपला-चुकिया-राखिन। तउला ला जोरिन हैं सबझिन॥
दुहना-टुकना-बीच मड़ाइन। घर घर ले निकलिन रौताइन॥
एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक। दौंरी में फांद के-लाइक॥
कोनों ढोंगी कोनो बुटरी। चकरेट्ठी दीखैं जस पुतरी॥
ऐन जवानी उठती सब-के। पन्द्रा सोला बीस बरस के॥
काजर आंजे अंलगा डारे। मूड़ कोराये पाटी पारे॥
पांव रचाये बीरा खाये। तरुवा-में टिकली चटकाये॥
बड़का टेंड़गा खोपा-पारे। गोंदा खोंचे गजरा डारे॥
नगता लाली मांग लगाये। बेनी-में फुन्दरी लटकाये॥
टीका-बेंदी अलखन पारे। रेंगैं छाती कुला निकारे॥
कोनों हैं झाबा गंथवाये। कोनो जुच्छा बिना कोराये॥
भुतही मन अस रेंगत जावैं। उड़ उड़ चुन्दी मुंह में-आवैं॥
पहिरे रंग-रंग-के गहना। ठलहा कोनो अङ्ग रहे ना॥
कोनों पैरी चूरा जोंड़ा। कोनो गंठिया कोनो तोंड़ा॥
कोनो ला घुंघरू बस-भावै। छुमछुम छुमछुम बाजत जावै॥
खनर खनर चूरी सब बाजै। खुल के ककनी हांथ बिराजै॥
पहिरे बहुंटा और पछेला। जेखर रहिस सौख है जेला॥
बिल्लोरी चूरी हलबाही। रत्तन-पिंउरी औ टिकलाही॥
कोनो छुच्छा लाख बंधाये। पिंउरा पटली ला झमकाये॥
पहिरे हैं हरियर धूपाही। कोनो छुटुंवा कोनो पटाही॥