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"दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर
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दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो । | दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो । |
23:17, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
दाम की दाल छदाम के चाउर घी अँगुरीन लैँ दूरि दिखायो ।
दोनो सो नोन धयो कछु आनि सबै तरकारी को नाम गनायो ।
विप्र बुलाय पुरोहित को अपनी बिपता सब भाँति सुनायो ।
साहजी आज सराध कियो सो भली बिधि सोँ पुरखा फुसलायो ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।