भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दार ,बरीं, जौ, दरिया लै गए / महेश कटारे सुगम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatBundeliRachna}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
दार ,बरीं, जौ, दरिया लै गए ।
+
दार, बरीं, जौ, दरिया लै गए ।
 
भड़या गुर की परिया लै गए ।
 
भड़या गुर की परिया लै गए ।
  

20:52, 25 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

दार, बरीं, जौ, दरिया लै गए ।
भड़या गुर की परिया लै गए ।

पैसा-धेला कितऊँ नईं मिलौ,
टाठी, लोटा, थरिया लै गए ।

गानो, गुरिया हात नईं लगौ,
तवा करैया, झरिया लै गए ।

चून तनक सौ हतौ छोड़ गए,
पापर भरी टिपरिया लै गए ।

ठण्ड हती सो गद्दा, पल्ली,
साड़ी, घंघरा, फरिया लै गए ।

काल टूट गई ती बउआ की,
टूटी सुगम पुंगरिया लै गए ।