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दिलकशी वक़्त की बढ़ी होगी | दिलकशी वक़्त की बढ़ी होगी |
20:52, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
दिलकशी वक़्त की बढ़ी होगी
हाँफकर रोशनी बुझी होगी
चंद झोंके हवा के आएंगे
एक खिड़की जहाँ खुली होगी
माँ रिवाजों की शोख़ बस्ती में
भाई-भाई में कल बँटी होगी
उनके आने की एक आहट से
धूप में चांदनी बिछी होगी
वो हथेली जिसे न छू पाया
उसको मेरी बहुत कमी होगी