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"दिल्ली जाने का समय / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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सरस्वती-पथ का सरण करने वाली है गंगा।  
 
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'''रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली
 
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20:18, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण

बचपन की मुस्कुराहटों पर
रखे जा रहे हैं पत्थर
गिरवी रखे जा रहे हैं जवानी के सपने
बुढ़ापे की उम्मीदों को धोखा दिया जा रहा है
दिन-रात।

तकनीकी नाकेबंदी की जकड़ में है गंगा
यमुना के गले में उग रही है कंकड़ों की फ़सल
समुद्र को अलविदा कहने पर
मज़बूर की जा रही है नर्मदा।

गोमुख का भूगोल टेढ़ा हो रहा है
टेढ़ा हो रहा है हरि की पैड़ी का भूगोल
हरिद्वार का भूगोल टेढ़ा हो रहा है।

मेरठ जाने का समय है यह
समय है कानपुर, प्रयाग, पटना और कलकत्ता जाने का।
दिल्ली जाने का समय है यह
सरस्वती-पथ का सरण करने वाली है गंगा।

रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली