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"दिल्ली में / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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01:30, 24 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

कारों की रेस में
शामिल बैलगाड़ियाँ
ख़ुश है घोड़ागाड़ियों को देख कर
सभ्यता का विकास बरकरार है यहाँ
सर के ऊपर से गुज़रते हवाई जहाजों के
बावजूद।

चेहरे या तो बेरंग है
या फिर बदले हुए
मुलाक़ातें मुलाक़ातों की तरह नहीं है
प्रेमिकाएँ तक झूठ बोलती है यहाँ
दोस्त कहे जाने वाले लोग भी।

प्यार और दोस्ती के लिए
झूठ जरूरी है दिल्ली में
जमुना के बे-सेहत पानी की तरह


रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली