भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दिल अगर फूल सा नहीं होता / जगदीश रावतानी आनंदम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश रावतानी आनंदम |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> दिल अगर ...)
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
दिल अगर फूल सा नही होता
+
दिल अगर फूल सा नहीं होता
यू किसी ने छला नही होता
+
यूँ किसी ने छला नहीं होता
  
 
था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
 
था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
रोते रोते मरा नही होता
+
रोते रोते मरा नहीं होता
  
दिल में रहते है दिल रुबाओं के
+
दिल में रहते है दिलरुबाओं के
आशिको का पता नही होता
+
आशिकों का पता नहीं होता
  
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नही तब तक
+
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं तब तक
इश्क जब तक हुआ नही होता
+
इश्क जब तक हुआ नहीं होता
  
 
पाप की गठरी हो गई भारी
 
पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नही होता
+
वरना इतना थका नहीं होता
  
 
होश में रह के ज़िन्दगी जीता
 
होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यू रुसवा हुआ नही होता
+
तो यूँ रुसवा हुआ नही होता
  
 
जुर्म हालात करवा देते है
 
जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नही होता
+
आदमी तो बुरा नहीं होता
  
ख़ुद से उल्फत जो कर नही सकता
+
ख़ुद से उल्फत जो कर नहीं सकता
वो किसी का सगा नही होता
+
वो किसी का सगा नहीं होता
  
 
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
 
क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
 
आदमी ग़र गिरा नहीं होता
 
आदमी ग़र गिरा नहीं होता
 
<poem>
 
<poem>

20:20, 26 अगस्त 2009 का अवतरण

दिल अगर फूल सा नहीं होता
यूँ किसी ने छला नहीं होता

था ये बेहतर कि कत्ल कर देती
रोते रोते मरा नहीं होता

दिल में रहते है दिलरुबाओं के
आशिकों का पता नहीं होता

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं तब तक
इश्क जब तक हुआ नहीं होता

पाप की गठरी हो गई भारी
वरना इतना थका नहीं होता

होश में रह के ज़िन्दगी जीता
तो यूँ रुसवा हुआ नही होता

जुर्म हालात करवा देते है
आदमी तो बुरा नहीं होता

ख़ुद से उल्फत जो कर नहीं सकता
वो किसी का सगा नहीं होता

क्यों ये दैरो हरम कभी गिरते
आदमी ग़र गिरा नहीं होता