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"दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा / मोमिन" के अवतरणों में अंतर

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दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा  
 
दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा  
  
ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर्थ  
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'''कठिन शब्दों के अर्थ:
क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ==प्रीतम के प्रेम के क़ाबिल  
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क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ: प्रीतम के प्रेम के क़ाबिल, वलवला: जोश ख़रोश, तुग़याँ: ज़ोर- चढ़ाओ, रफ़ू: सिलाई, ख़्याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़गाँ: पलकों के हिलने-जुलने का ध्यान, फ़िक्र-ए-चारा-ओ-दरमाँ: दवा-दारू की चिंता, लाफ़: बकवास, शेख़ी, ढोंग इत्यादि
वलवला--जोश ख़रोश, तुग़याँ--ज़ोर- चढ़ाओ, रफ़ू--सिलाई
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</poem>
ख़्याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़गाँ-- पलकों के हिलने-जुलने का ध्यान  
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फ़िक्र-ए-चारा-ओ-दरमाँ--दवा-दारू की चिंता,
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लाफ़--बकवास-शेख़ी- ढोंग इत्यादि
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14:09, 22 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा
वो वलवला, वो जोश, वो तुग़याँ नहीं रहा

करते हैं अपने ज़ख़्म-ए-जिगर को रफ़ू हम आप
कुछ भी ख़्याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़गाँ नहीं रहा

क्या अच्छे हो गए कि भलों से बुरे हुए
यारों को फ़िक्र-ए-चारा-ओ-दरमाँ नही रहा

किस काम के रहे जो किसी से रहा न काम
सर है मगर ग़ुरूर का सामाँ नहीं रहा

मोमिन ये लाफ़-ए-उलफ़त-ए-तक़वा है क्यों अबस
दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा

कठिन शब्दों के अर्थ:
क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ: प्रीतम के प्रेम के क़ाबिल, वलवला: जोश ख़रोश, तुग़याँ: ज़ोर- चढ़ाओ, रफ़ू: सिलाई, ख़्याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़गाँ: पलकों के हिलने-जुलने का ध्यान, फ़िक्र-ए-चारा-ओ-दरमाँ: दवा-दारू की चिंता, लाफ़: बकवास, शेख़ी, ढोंग इत्यादि