भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल के लिए वो एक नज़र तीर बन गई / ज़ाहिद अबरोल

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र 'द्विज' (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:08, 29 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल |संग्रह=दरिया दरिया-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


दिल के लिए वो एक नज़र तीर बन गई
मेरे लिए यह ज़िन्दगी जं़जीर बन गई

अदना सा इक कमाल था मेरे जुनून का
वो लबकुशा हुए मिरी तक़दीर बन गई

आए हैं पूछने को वो बीमार-ए-ग़म का हाल
हर एक ग़म की मौत जब इक्सीर बन गई

दिल पर कुछ इस मिज़ाज से उभरे हैं नक़्श-ए-ग़म
बेताबी-ए-हयात की तस्वीर बन गई

“ज़ाहिद” हज़ार मंज़िलें उस पर निसार हैं
वो इक सदा जो पांव की ज़ंजीर बन गई

शब्दार्थ
<references/>