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"दिल के लुट जाने का ग़म कुछ भी नहीं / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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मर के यह निकला कि हम कुछ भी नहीं
 
मर के यह निकला कि हम कुछ भी नहीं
  
जा रहे मुँह फेर कर भौंरे गुलाब!
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जा रहे मुँह फेरकर भौंरे गुलाब!
आप की ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं!   
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आपकी ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं!   
 
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23:59, 8 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


दिल के लुट जाने का ग़म कुछ भी नहीं!
आप ही सब कुछ हैं, हम कुछ भी नहीं!

मुस्कुरा उठती थीं हमको देखकर
आज उन भौंहों पे ख़म कुछ भी नहीं!

मौत का डर प्यार में क्यों हो हमें!
ज़िन्दगी मरने से कम कुछ भी नहीं!

हम समझते थे कि सब कुछ हैं हमीं
मर के यह निकला कि हम कुछ भी नहीं

जा रहे मुँह फेरकर भौंरे गुलाब!
आपकी ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं!