भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल में अरमान फिर हैं मचलने लगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:35, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=एहस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिल मे अरमान फिर हैं मचलने लगे
आईना सामने रख सँवरने लगे
पहले वादा किया उम्र भर साथ का
देख लो किस तरह अब मुकरने लगे
खूबसूरत बहुत उन के अल्फ़ाज़ थे
बात दिल तोड़ने की जो कहने लगे
आप आये यहाँ फ़ासला मिट गया
दर्द बन के जिगर में उतरने लगे
संग बन वो लगाते रहे ठोकरें
सामने बैठ हम सिजदा करने लगे
है रही जिंदगी मुश्किलों से भरी
वक्त की धार के साथ बहने लगे
चाँद को भी है देखो गहन लग गया
एक किरन के लिये भी तरसने लगे