भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीन-हीन मढ़ी ऐलै, सतगुरु मोर हे / छोटेलाल दास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीन-हीन मढ़ी ऐलै, सतगुरु मोर हे।
भरम के तम गेलै, होलै ज्ञान-भोर हे॥टेक॥
टूटलै किवाड़ सखी, कठिन कठोर हे।
सतगुरुँ कैलखिन, उर में इँजोर हे॥1॥
पाप-दोष भागि गेलै, काम-क्रोध चोर हे।
कमल बिगसि गेलै, समझ अथोर हे॥2॥
मन में बिराग भेलै, गेलै दुख घोर हे।
गुरु-प्रेम रँगि गेलाँ, भेलाँ सराबोर हे॥3॥
गुरु के प्रणाम करौं, दोउ कर जोरि हे।
‘लाल दास’ गुण गाबै, मगन विभोर हे॥4॥