भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुःखों की बस्तियों में तो / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: रचनाकार: भावना कुँअर ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ फुरसत से घर में आना तुम और आके फिर...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=भावना कुँअर | |
− | + | |संग्रह= | |
+ | }} | ||
फुरसत से घर में आना तुम | फुरसत से घर में आना तुम | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 27: | ||
बन के काज़ल सज जाना तुम। | बन के काज़ल सज जाना तुम। | ||
− | |||
− |
14:51, 8 मई 2009 के समय का अवतरण
फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।