भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुःख-मृत्यु में देखूँ मैं नित / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:03, 24 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग तोड़ी-ताल कहरवा)

 दुःख-मृत्यु में देखूँ मैं नित बहती सुखद सुधा-धारा।
 अति दारिद्र्‌य-दैन्यमें पाऊँ मैं तव कर-स्पर्श प्यारा॥
 पीड़ा-व्यथा भयानकमें दीखे मुझको तव मंगल-दान।
 रूक्ष-परुष वाणीमें मैं सुन पाऊँ मधु मुरलीकी तान॥