भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुख भी सुख का बन्धु बना / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:40, 18 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |रचनाकाल=7 दिसम्बर, 19…)
दुख भी सुख का बन्धु बना
पहले की बदली रचना।
परम प्रेयसी आज श्रेयसी,
भीति अचानक गीति गेय की,
हेय हुई जो उपादेय थी,
कठिन, कमल-कोमल वचना।
ऊँचा स्तर नीचे आया है,
तरु के तल फैली छाया है,
ऊपर उपवन फल लाया है,
छल से छुटकर मन अपना।