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दूर बहुत दूर मेरा साथी है / हरीश प्रधान

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मौसम बरसाती है।
क्‍यों पागल बदरी रह-रह नीर बहाती है
क्‍यों हवा बावरी सुधि की धूर उड़ाती है
क्‍यों भरी ज्वार की क्‍यारी पर वह मोर
फैलाकर पंख देखता किसका छोर

क्‍यों गीतों की पनिहारिन
बूँदों की तालों पर
रस भरी गगरिया
ढुलका-ढुलका जाती है
याद तुहारी आती है
मौसम बरसाती है

किस पीड़ा से रोती रजनी कीआँख
आँसू आँचल में लिए सरोजी पाँख
नीला दिखता वसुधा का सुर्ख शरीर
छूटी जाती है आस, न बँधती धीर

अलसायी आँखों की
कोर फड़क जाती है
कौन सँदेशा लाती है
चिन्ता खाये जाती है
याद तुहारी आती है
मौसम बरसाती है

किस बदरी ने चंन्दा को घेरा है
क्‍या पता किधर प्राणों को डेरा है
हर स्वाँस मर्सिया रो-रो गाती है
बिछुड़े प्रियतम को पास बुलाती है

चढ़ते दिन, ढलती रात
रुलाती है
चेहरा हो जाता लाल
भर आती छाती है
याद तुहारी आती है
मौसम बरसाती है