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दृष्टिभ्रम / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना

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उसे दिखता है सूरज
सिर्फ़ आग का एक गोला
जो उसके अधनंगे तन को
झुलसा देने के बाद
बढ़ता चला आ रहा है
आधी उघडी झोपड़ी झुलसाने

उसे चाँद में नज़र नहीं आती
शायरों, कवियों और प्रेमियों की तरह
किसी नायिका की भोली-भाली सूरत
उसे तो दिखता है चाँद
एक अधजली रोटी
जो अगर हाथ आ जाए
थोड़ी शांत हो जाएगी जठराग्नि
और कट जाएगी कम से कम एक रात
चैन की नींद के साथ

वह पागल कत्तई नहीं
जो सोचने लगा है आज
सूरज और चाँद के
अहसानों से बेफ़िक्र ऐसी ऊल-जलूल बातें
वह तो दृष्टिभ्रम का
ख़तरनाक मरीज बन गया है
कल ही वह भला-चंगागया था
इलाक़े के बड़े साहब को
अपनी फरियाद सुनाने
पर उसे नज़र आया था नग्न यमराज
वह सिर पर पाँव रखे
भाग खड़ा हुआ था
टूटी खाट पर पड़ा
ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ाने लगा था
और इकट्ठे हुए पड़ोसी
उसे पागल समझने लगे थे
उसके दृष्टिभ्रम से बिल्कुल अनजान!