भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखा करूँ तुहारी लीला / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:30, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग शिवरंजना-ताल कहरवा)
 देखा करूँ तुहारी लीला, गाया करूँ तुहारा नाम।
 सुना करूँ नित मुरलीकी धुन, वचन तुहारे परम ललाम॥
 नेत्र-मधुप नित करें तुहारे वदन-कमल-मधु-रसका पान।
 पूर्ण समर्पित हो जायें इन्द्रिय-तन, मन-मति, जीवन-प्रान॥