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देखि-देखि आतुरी बिकल-ब्रज-बारिन की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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देखि-देखि आतुरी बिकल-ब्रज-बारिन की,
उद्धव की चातुरी सकल बहि जात है ।
कहै रतनाकर कुशल कहि पूछि रहे,
अपर सनेह की न बातैं कहि जात हैं ॥
मौन रसना ह्वै जोग जदपि जमायो सबै,
तदपि निरास-बासना न गहि जाति हैं ।
साहस कै कछुक उमाहि पूछिबै कौं ठाहि,
चाहि उत गोपिका कराहि रहि जाति हैं ॥27॥