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"देख हमैं सब आपुस में जो कुछ मन भावै सोई कहती हैं / नेवाज़" के अवतरणों में अंतर

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13:56, 5 अक्टूबर 2012 के समय का अवतरण

देख हमैं सब आपुस में जो कुछ मन भावै सोई कहती हैं.
ये घरहाई लुगाई सबै निसि द्यौस नेवाज हमें दहती हैं.
बातें चवाव भरी सुनिकै रिस आवति,पै चुप ह्वै रहती हैं.
कान्ह पियारे तिहारे लिये सिगरे ब्रज को हँसिबो सहती हैं.