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"देश / त्रिलोक सिंह ठकुरेला" के अवतरणों में अंतर

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हरित धरती,  
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हरित धरती ,
थिरकतीं नदियाँ,  
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थिरकतीं नदियाँ ,
हवा के मदभरे सन्देश।
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हवा के मदभरे सन्देश ।
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश॥
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सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। 
भावनाओं, संस्कृति के प्राण हो,  
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भावनाओं , संस्कृति के प्राण हो ,
जीवन कथा हो,  
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जीवन कथा हो ,
मनुजता के अमित सुख,  
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मनुजता के अमित सुख ,
तुम अनकही अंतर्व्यथा हो,  
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तुम अनकही अंतर्व्यथा हो ,
प्रेम, करुणा,  
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प्रेम, करुणा ,
त्याग, ममता,  
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त्याग , ममता ,
गुणों से परिपूर्ण हो तपवेश।
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गुणों से परिपूर्ण हो तपवेश ।
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश॥
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सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। 
पर्वतों की श्रंखला हो,  
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पर्वतों की श्रंखला हो ,
सुनहरी पूरव दिशा हो,  
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सुनहरी पूरव दिशा हो ,
 
इंद्रधनुषी स्वप्न की  
 
इंद्रधनुषी स्वप्न की  
सुखदायिनी मधुमय निशा हो,  
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सुखदायिनी मधुमय निशा हो ,
गंध, कलरव,  
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गंध, कलरव ,
खिलखिलाहट, प्यार  
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खिलखिलाहट , प्यार  
एवं स्वर्ग सा परिवेश।
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एवं स्वर्ग सा परिवेश ।
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश॥
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सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।। 
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तुम्हीं से  यह  तन ,
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तुम्हीं से  प्राण , यह  जीवन ,
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मुझ अकिंचन पर
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तुम्हारी ही कृपा का धन ,
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मधुरता ,मधुहास ,
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साहस ,
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और जीवन -गति तुम्हीं देवेश ।
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सिर्फ तुम  भूखंड की सीमा नहीं  हो  देश ।। 
 
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06:45, 16 नवम्बर 2016 का अवतरण

हरित धरती ,
थिरकतीं नदियाँ ,
हवा के मदभरे सन्देश ।
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।
भावनाओं , संस्कृति के प्राण हो ,
जीवन कथा हो ,
मनुजता के अमित सुख ,
तुम अनकही अंतर्व्यथा हो ,
प्रेम, करुणा ,
त्याग , ममता ,
गुणों से परिपूर्ण हो तपवेश ।
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।
पर्वतों की श्रंखला हो ,
सुनहरी पूरव दिशा हो ,
इंद्रधनुषी स्वप्न की
सुखदायिनी मधुमय निशा हो ,
गंध, कलरव ,
खिलखिलाहट , प्यार
एवं स्वर्ग सा परिवेश ।
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।
तुम्हीं से यह तन ,
तुम्हीं से प्राण , यह जीवन ,
मुझ अकिंचन पर
तुम्हारी ही कृपा का धन ,
मधुरता ,मधुहास ,
साहस ,
और जीवन -गति तुम्हीं देवेश ।
सिर्फ तुम भूखंड की सीमा नहीं हो देश ।।