भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोनों की आरज़ू में चमक बरकरार है / चित्रांश खरे
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:09, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चित्रांश खरे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दौनों की आरज़ू में चमक बरकरार है,
मैं इस तरफ हूँ और वो दरिया के पार है
दुनिया समझ रही है की उसने भुला दिया,
सच ये है उसे अब भी मेरा इंतज़ार है
शायद मुझे भी इश्क ने शादाब कर दिया,
मेरे दिलो दिमाग में हर पल खुमार है
क्यों मेने उसके प्यार में दुनियां उजाड़ ली,
इस बात से वो शख्स बहुत शर्मसार है
तूने अदा से देखकर मजबूर कर दिया,
तीरे निगाह दिल का मेरे आर पार है
दौलत से ज़रा सी भी मुहब्बत नहीं मुझे,
फिर भी मेरे नसीब में ये बेशुमार है