भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धूप कोठरी के आईने में / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 10 मार्च 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह }} <poem> धूप कोठरी के आईने में खड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप कोठरी के आईने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुस्कराते
मौन आँगन में
मोम सा पीला
बहुत कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है