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धूप नदी में तैरें / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
खुशबू की लहरें
फिर उठ रहीं
आओ, हम धूप-नदी में तैरें
चंदन की घाटी में
दूर-दूर घूमें
नीले जलहंसों के साथ
आसमान चूमें
टापू तक सूरज की
छाँव बही
आओ, हम धूप-नदी में तैरें
इन्द्रधनुष की मेहराबें
पार चलें उनके
देखो, रितु गा रही
नाच रहे दिन सुन के
किरणों ने
रूप की कथाएँ कहीं
आओ, हम धूप-नदी में तैरें
बाँहों में सोनपंख
बादल को भर लें
पंखुरी गुलाबों की
होंठों पर धर लें
जी-भर सुख पीयें
जी भरे नहीं
आओ, हम धूप-नदी में तैरें