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[[Category:ग़ज़ल]]
नक्शा जो मन के कागज़ पर बनता है।<BR><BR>
उसके जैसा कहाँ कभी घर बनता है।<BR><BR>
एक पुराने डर के चलते बनवाया<BR>
घर के चलते रोज़ नया डर बनता है।<BR><BR>
शीत युद्ध के अंदेशे के साये में<BR>
क़दम क़दम पर रिश्ता बंकर बनता है।<BR><BR>
गेहुअन बनकर गद्दी पानेवाले को<BR>
गद्दी जब डसती है अज़गर बनता है।<BR><BR>
मेरे भीतर बस मेरा ‘मैं’ रहता है<BR>
मेरा जो है मेरे बाहर बनता है।<BR><BR>
दुख का धंधा छोड़ोगे तो समझोगे<BR>
कैसे कोई दुख पैग़म्बर बनता है।<BR><BR>
पैरों के नीचे पानी सिर पर पृथ्वी<BR>
जब भी कोई देश दिगम्बर बनता है।<BR><BR>
बनता है जनवरी काम पड़ जाने पर<BR>
जैसे निकला काम दिसम्बर बनता है।<BR><BR>