भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी की धार / बीना रानी गुप्ता

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:47, 1 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बीना रानी गुप्ता |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोड़ तटों के बाँध
रूढ़ियों का कचरा फेंक
दुर्गंध से बेपरवाह
नवचेतना से भरी
बही जा रही नदी

नीरस नीरव बंजर भू
तरसती रसधार को मरू
उर्वर बनाती जा रही
ममता से भरी नदी

सांझ ढली
थका शिशु
रवि को अंक में लिए
लोरी गा रही नदी।

अमा निशा
काली हर दिशा
पर निडर निर्भया सी
ओज भरे गीत
गा रही नदी।

चिन्तन मनन में लीन
सुपथ के राही सी
दार्शनिक सी
किसी नयी खोज में
बही जा रही है नदी।