भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नन्हे बच्चे / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:22, 4 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} Category:...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सूरज मुझको लगता प्यारा
लेकर आता है उजियारा ।
सूरज से भी लगते प्यारे
टिम-टिम करते नन्हे तारे।

तारों से भी प्यारा अम्बर
बाँटे खुशियाँ झोली भर-भर।
चन्दा अम्बर से भी प्यारा
गोरा- चिट्टा और दुलारा ।

चन्दा से भी प्यारी धरती
जिस पर नदियाँ कल-कल करती ।
पेड़ों की हरियाली ओढ़े
हम सबके है मन को हरती ।

हँसी दूध -सी जोश नदी -सा
भोले मुखड़े मन के सच्चे ।
धरती से प्यारे भी लगते
खिल-खिल करते नन्हे बच्चे

इन बच्चों में राम बसे हैं
ये ही अपने किशन कन्हाई ।
इन बच्चों में काबा-काशी
 और नहीं है तीरथ है भाई ।