भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नमी व धूप हवा दे गुलाब खिलने दे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:35, 26 फ़रवरी 2024 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नमी व धूप हवा दे गुलाब खिलने दे।
नक़ाब रुख़ से उठा दे गुलाब खिलने दे।

गुलाब के हैं बगीचे ये तेरे गाल, इन्हें,
न आँसुओं से जला दे गुलाब खिलने दे।

चुभें बदन में हजारों गुलाब की डालें,
दवा लबों से लगा दे गुलाब खिलने दे।

खुले जो बाल तेरे पल में छुप गया सूरज,
लटें दो चार हटा दे गुलाब खिलने दे।

कहाँ ये गर्म उसाँसें कहाँ गुलों की कशिश,
चमन मेरा न जला दे गुलाब खिलने दे।