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फिर भूल गया मैं सब पीड़ाएँ, दुख अतीत का अपना
देख लिया था मैंने जैसे, कोई सुन्दर-सा प्यारा सपना
1881.
'''मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
The argent splendour of white limbs ascend,
And in that joy forgot my tortured past.
1881.
</poem>
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