भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया फूल गुलशन में खिलता कहाँ / हरिवंश प्रभात

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:55, 17 नवम्बर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंश प्रभात |अनुवादक= |संग्रह=छ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नया फूल गुलशन में खिलता कहाँ है।
ये दिल दोस्तों से बहलता कहाँ है।

नया है ज़माना, तरीके नये हैं,
पुराना कोई नोट चलता कहाँ है।

जिगर में नहीं चोट पहुँचाओ यारों,
ये दरका हुआ दिल भी सिलता कहाँ है।

समय सुन लो बलवान होता है हरदम,
हमेशा किसी का भी चलता कहाँ है।

सताते रहेंगे हमेशा ही जालिम,
जो पत्थर का दिल है पिघलता कहाँ है।