भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नये वर्ष तुम आओ लेकिन / ज्ञान प्रकाश आकुल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:19, 1 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश आकुल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

असमय तोड़े गये डाल से
जो पथ में बिछ गये बेचारे,
नये वर्ष तुम आओ लेकिन
तुम उन सुमनों को क्या दोगे ?

रहे अहर्निश राह देखते जागे बिना पलक झपकाये
धूल धूप से रहे अविचलित पानी बरसे आंधी आये
पलकों से है राह बुहारी
पथ से शूल हटाये सारे
नये वर्ष तुम आओ लेकिन
तुम उन नयनों को क्या दोगे ?

दूर दूर तक महक रहा पथ महक उठी है धरती पूरी
यह सुगन्ध लाने को जिनके तन से आयी है कस्तूरी
पल भर की खुशबू की खातिर
जो बैठे हैं सब कुछ हारे
नये वर्ष तुम आओ लेकिन
तुम उन हिरनों को क्या दोगे ?

सुमनों नयनों या हिरनों को यद्यपि कोई चाह नहीं है
फिर भी गलत बात है तुमको यदि उनकी परवाह नहीं है
जिन वचनों ने पल पल गाये
हँस कर स्वागत गान तुम्हारे
नये वर्ष तुम आओ लेकिन
तुम उन वचनों को क्या दोगे ?