भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नारी गही बैद सोऊ बेनि गो अनारी सखि / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:27, 23 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' }} <poem> नारी ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
नारी गही बैद सोऊ बेनि गो अनारी सखि,
जाने कौन वुआधि याहि गहि गहि जाति है ।
कान्ह कहै चौंकत चकित चकराति ऐसी,
धीरज की भिति लखि ढहि ढहि जाती है ।।
कही कहि जाति नहिं, सही सहि जाति नहिं,
कछू को कछू सनेही कहि कहि जाति है ।
बहि बहि जात नेह, दहि, दहि जात देह,
रहि रहि जाति जान र्तहि रहि जाति है ।।