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"नित चातक चाय सोँ बोल्यो करै मुरवान को सोर सुहावन है / अज्ञात कवि (रीतिकाल)" के अवतरणों में अंतर
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नित चातक चाय सोँ बोल्यो करै मुरवान को सोर सुहावन है । | नित चातक चाय सोँ बोल्यो करै मुरवान को सोर सुहावन है । |
23:18, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
नित चातक चाय सोँ बोल्यो करै मुरवान को सोर सुहावन है ।
चमकै चपला चँहु चाव चढ़ी घनघोर घटा बरसावन है ।
पलकौ पपिहा न रहै चुप ह्वै अरु पौन चहूँ दिसि आवन है ।
मिलि प्यारी पिया लपटैँ छतियाँ सुख को सरसावन सावन है ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।