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निलम्बित पल / उंगारेत्ती

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चलते-चलते आख़िरकार

पा लिया है मैंने फिर

प्यार का कुँआ

एक हज़ार एक रात की आँख में

सोया हूँ मैं

उजड़े हुए बग़ीचों में

आई है वह पंडुकी की तरह

विश्राम के लिए

दुपहरी की मूर्च्छीली हवा में

बीनी हैं मै ने

नारंगियाँ और चमेली

उसकी ख़ातिर ।