भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद ही नींद में / विनोद शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:23, 15 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शब्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने उद्गम से निकलकर नदी
बहती हुई मिल जाती है सागर में
एक लम्बे सफर के बाद
उद्गम से पहले वह कहां थी?
क्या कर रही थी?
और सागर में मिलने के बाद वह कहां होगी?
और क्या करेगी? वह नहीं जानती
जैसे कि मैं, यह तो जानता हूं कि माता के गर्भ
से निकलकर, मृतयु में विलीन होने से पहले,
पिछले 67 वर्षों से
मैं पृथ्वी पर रह रहा हूं
मगर यह नहीं जानता कि कब और
कहां से आया था मैं यहां
और कब और कहां जाऊंगा मैं यहां से?
तो तुम्हें क्या बताऊ?“

इस ‘न जानने’ या ‘ न जान पाने’ की स्थिति को
आचार्य ‘सुषुप्ति-अवस्था’ कहते हैं।
हम सभी, अपनी सारी जिन्दगी
गुजार देते हैं नींद में,
जन्म लेते हैं नींद में
और नींद में ही मर जाते हैं
नितांत अनभिज्ञ-
सृष्टि की, सृष्टि से पहले और सृष्टि के बाद की,
और अपनी जिंदगी की वास्तविकता से

देख रहे हों, मानो, स्वप्न में हम,
‘योगमाया प्रडक्शन्स’ की सदाबहार
फिल्म: ‘मैन इन वंडरलैंड’
जो नहीं होती खत्म चंद घंटों में,
बल्कि चलती रहती है निरंतर
खत्म होने तक
निर्माता ‘ब्रह्मा जी’ की आयु।