भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नींद / विजय गुप्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अथिर जल में
अनिद्रित मछलियाँ
बर्राता रह-रह पीपल
बेचैनियाँ ओढ़े नीम
अदबदा कर भागता कुत्ता
सियारों की रुलाई
चौकीदार का बस जागना
और चीख़ना -
सोना नहीं ! सोना नहीं !

पर नींद किसकी आँख में
नींद को दुख हर गया
अपमान नींद को चीर गया
आँख के गोलार्द्ध में
उम्र भर का रतजगा

धुनिए की धुनकी पर
धुन गई नींद
आँख भर आँसुओं में
डूब कर
मर गई नींद ।