भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नीर भरी दुख की बदली / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:33, 6 जुलाई 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेखिका: महादेवी वर्मा

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झर्णी मचली!

मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,

मैं क्षितिज भ्रकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी आविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!

पथ न मलिन करता आना,
पद चिन्ह न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन हो अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमडी कल थी मिट आज चली!