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नेह के जोत-4 / रामकृष्ण

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गुनगुना के मनेमन रहल बात जे
आझ चाहे उगल आँख के पात पर।
सोझ दिठिओ न हेरइ सपनमा सिरज
नेह के जोत मन में खिले बात पर॥

एक संझा निरेखल संझौती कहीं
गुसमुसी झाँझ पर चुप्प कइसे रहे?
चान के मुँह लजाएल निअन चाननी
हेर के गीत, हिरदा ऊ कइसे कहे।
ई भरम पोसके का करूँ मीत हम
सब सबबद, भाव उग जा रहल गात पर।
फूल असरा के सौंसे खिलल साँस में,
गन्ह के एगो मौसम उताहुल रहल,
अब इ कइसे कहूँ धुक-धुकी प्रान के
गीत बनके इ कइसे समाएल रहल
साज पर साज के, दे बुलहटा, कने
छंद-चौहट रचल जा रहल रात ीार॥
पीर मनके न परतीत कोई करे,
राह पर राह-अँखुआ रहल नेह के,
बाँसुरी के करेजा बिन्हे के मरम
पोर में बस लिखाएल रहल देह के॥
सातवरनी गगन में उगे आस के
जीत हम्मर निछाउर हे बरसात पर॥