नैतिकता ना रही किसे मैं, यो समाज उघाड़ा होग्या रै / जय सिंह खानक
नैतिकता ना रही किसे मैं, यो समाज उघाड़ा होग्या रै
शरीफ आदमी नै ना जीवन दे, यो जी नै खाड़ा होग्या रै
चोर लुटेरे बदमाशां की, चारों तरफ नै धूम मची
गलियां के म्हां भय छाया, दिन रात नशे की झूम मची
शरीफ आदमी कितकै लिकडै़, या बदमांशां की झूम मची
चोरी-जारी लूट-खसूट की, चोगरदै हकूम मची
ना कोए जगह महफूज बची, यो ऊतां का खाड़ा होगा रै
लिहाज शर्म कती तार बगादी, शर्म का खोज रह्या कोन्या
पास-पड़ौसी के लागै किसका, भाई मैं प्यार रह्या कोन्या
चाचा-ताऊ, भाई-भतीजा, कोए रिस्ता खास रह्या कोन्या
यारी दोस्ती खत्म हुई, कोए सच्चा मीत रह्या कोन्या
कोए माणस खास रह्या कोन्या, भुतां का बाड़ा होग्या रै
नैतिकता का दम भरणे आळे, खुद हैवान हमें देखे
झूठ-लूट-खसूट मचावैं, इसे भगवान हमें देखे
पंचायतां मैं झूठ बोलते, इसे शैतान हमें देखे
धोंस जमावैं कमजोरां पै, इसे बलवान हमें देखे
ये घटिया चाल-चलण देखे यो इसा पुवाड़ा होग्या रै
कदम-कदम पै धोख्यां की, एक बिसात बिछा राखी सै
खोद-खोद के गहरी खाई, पत्तां तै ढ़क राखी सै
रंग-बिरंगें फूल सजाकै, इत्र छिड़क राखी सै
घरक्यां नै भी शिकार बणांले, ना छोड़ कसर राखी सै
ना कोए कसर बाकी सै जयसिंह, यो इसा बखेड़ा होग्या