भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

न छोड़ यों मुझे, ऐ मेरी ज़िन्दगी बेसाज़ / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:02, 26 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=हर सुबह एक ताज़ा गुलाब / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


न छोड़ यों मुझे, ऐ मेरी ज़िन्दगी बेसाज़
कभी तो मैं भी अदाओं का तेरा था हमराज़

नहीं किसी से भी मिलता है अब मिजाज़ इसका
कुछ इस तरह था छुआ उसने मेरे दिल का ये साज़

तमाम उम्र बड़ी कशमकश में गुज़री है
कभी तो मुझसे बता दे तू अपने प्यार का राज़

पता नहीं कि कहाँ रात गिरी थी बिजली!
कहीं से कान में आयी थी चीख़ की आवाज़

गुलाब! बाग़ में क्या-क्या न गुल खिलाता है
ये हर सुबह तेरे खिलने का एक नया अंदाज़!