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"न राहुल से न मोदी से न खाकी से न खादी से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से। | वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से। | ||
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ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से। | ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से। | ||
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ज़मीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से। | ज़मीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से। | ||
चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’, | चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’, | ||
− | ज़माने तंग आया मैं तेरी | + | ज़माने तंग आया मैं तेरी आशिक़ मिज़ाजी से। |
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12:56, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
न हाकिम से, न मुंसिफ़ से, न ख़ाकी से, न खादी से।
वतन की भूख मिटती है तो होरी की किसानी से।
ये फल दागी हैं मैं बोला तो फलवाले का उत्तर था,
मियाँ इस देश में सरकार तक चलती है दागी से।
ख़ुदा के नाम पर जो जान देगा स्वर्ग जायेगा,
ये सुनकर मार दो जल्दी कहा सबने शिकारी से।
ये रेखा है गरीबी की जहाज़ों से नहीं दिखती,
ज़मीं पर देख लोगे पूछकर अंधे भिखारी से।
चुने जिसको, सहे उसके सितम चुपचाप ये ‘सज्जन’,
ज़माने तंग आया मैं तेरी आशिक़ मिज़ाजी से।