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पच्चीस / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह

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चैत हे सखी सोलहो सिंगार करी, असरा ताकै छै कचनार हे
बेली चमेली संग, करै ठिठोली, हमरा पर पालो के मार हे।

बैसाख हे सखी दही फेंटाबै, मक्खन मट्ठा घोरजौरी हे
ओर्हा पन्ना मटकुइयाँ के पानी चूड़ा हिलसा दहियौरी हे।

जेठ हे सखी लूक बरसै, फड़कै बायाँ आँख हे
अगरावै इतरावै, लटुवावै खनु खनु, उड़ै सरंग बिनु पाँख हे।

अषाढ़ हे सखी शयन एकादशी, चातुर्मास विश्राम हे
क्षीर समुद्र मेॅ, शेषनाग सेजिया, लक्ष्मी संग आठो याम हे।

सावन हे सखी सतरंगी मनमा, चितवन नभ लहराय हे
नाचै जे सुक पिक, मीन मयूरा, पिया बिनु मन बौराय हे।

भादो हे सखी सातो बहिन संग, गंगा के धार मिली जाय हे
डगमग नैया, निरमल खेवैइया, कोरी उमरिया इतराय हे।

आसिन हे सखी सिंहवाहिनी, खड्ग चक्र शूल धारिणी
गदा भुसुण्डि शंख, परिध मस्तक, बाण धनुषा शोभिनी।

कातिक हे सखी नया कलेमरोॅ लेखा जोखा के शुरूआत हे
ऋद्धि सिद्धि धन, लक्ष्मी गनपति, खाता बही पूजै साथ हे।

अगहन हे सखी धन्य धरा धन, अम्मा दै खोंइचा भरी धान हे
सीसो एन्हो धानी, बढ़ियो पलरियो, मठिया तैंती सूरज चान हे।

पूस हे सखी केकरा सेॅ मिलौ मिसौं, के मोरो करती सम्हार हे
गोतनो नैहयर, ननदी अपनो महलिया, छोटका दियौरवा लभार हे।

माघ हे सखी तपसी मदारी के, सिद्धासन मंदार हे
ध्यान भंग अंग, अनंग संग जंग, नेत्र रंग अंगार हे।

फागुन हे सखी सखा मदन संग, पंच फूलो के संधान हे
टुटलै समाधि, भोला बराती, गौरा के निम्ही गेलै आन हे।