भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पतबिछनी / पतझड़ / श्रीउमेश

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:15, 2 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यै पतझड़ में पतबिछनी, पत्ता केॅ आज हलोरै छै।
यहेॅ एक छै हमरी सक्खी, ठुट्ठोॅ गाछ अगोरै छै॥
लागै छै सवरीं बोढ़ै छै, रामोॅ के अगवानी में।
केतना छै उत्साह-प्रेम, एकरा यै विगत जवानी में॥
कखनूँ चिलका केॅ लेॅ केॅ, अँचरातर दूध पिलाबै छै।
कखनूँ बेटी के ढीलोॅ हेरै छै, जी बहलाबै छै॥